विद्यार्थी परिषद के शिल्पी बाल आप्टे

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संगठन में रीढ़ की भूमिका निभाने वाले बलवंत परशुराम (बाल) आप्टे का जन्म 18 जनवरी, 1939 को पुणे के पास क्रांतिवीर राजगुरु के जन्म से धन्य होने वाले राजगुरुनगर में हुआ था।

उनके पिता श्री परशुराम आप्टे एक स्वाधीनता सेनानी तथा समाजसेवी थे। वहां पर ग्राम पंचायत, सहकारी बैंक आदि उनके प्रयास से ही प्रारम्भ हुए। यह गुण उनके पुत्र बलवंत में भी आये। बालपन से ही संघ के स्वयंसेवक रहे बलवंत आप्टे प्रारम्भिक शिक्षा गांव में पूरी कर उच्च शिक्षा के लिए मुंबई आये और एल.एल.एम कर मुंबई के विधि विद्यालय में ही प्राध्यापक हो गये।

1960 के दशक में विद्यार्थी परिषद से जुड़ने के बाद लगभग 40 वर्ष तक उन्होंने यशवंतराव केलकर के साथ परिषद को दृढ़ संगठनात्मक और वैचारिक आधार दिया। विद्यार्थी परिषद ने न केवल अपने, अपितु संघ परिवार की कई बड़ी संस्थाओं तथा संगठनों के लिए भी कार्यकर्ता तैयार किये हैं। इसमें आप्टे जी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है।

1974 में विद्यार्थी परिषद के रजत जयंती वर्ष में वे राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गये। इस समय महंगाई और भ्रष्टाचार के विरुद्ध देश में युवा शक्ति सड़कों पर उतर रही थी। इस आंदोलन को विद्यार्थी परिषद ने राष्ट्रव्यापी बनाया। जयप्रकाश नारायण द्वारा इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार करने से यह आंदोलन और अधिक शक्तिशाली हो गया।

इससे बौखलाकर इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगा दिया। आप्टे जी भूमिगत होकर आंदोलन का संचालन करने लगेे। दिसम्बर 1975 में वे पकड़े गये और मीसा नामक काले कानून के अन्तर्गत जेल में ठूंस दिये गये, जहां से फिर 1977 में चुनाव की घोषणा के बाद ही वे बाहर आये। जेल जीवन के कारण उनकी नौकरी छूट गयी। अतः वे वकालत करने लगे। अगले 20 साल तक वे गृहस्थ जीवन, वकालत और विद्यार्थी परिषद के काम में संतुलन बनाकर चलते रहे। उन्होंने संगठन के बारे में केवल भाषण नहीं दिये। वे इसके जीवंत स्वरूप थे।

उनकी एकमात्र पुत्री चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई पूरी कर दो वर्ष विद्यार्थी परिषद की पूर्णकालिक रही। फिर उसका अन्तरजातीय विवाह परिषद के एक कार्यकर्ता से ही हुआ। इस प्रकार विचार, व्यवहार और परिवार, तीनों स्तर पर वे संगठन से एकरूप हुए।

1996 से 98 तक वे महाराष्ट्र शासन के अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे। जब उन्हें भाजपा में जिम्मेदारी देकर राज्यसभा में भेजने की चर्चा चली, तो उन्होंने पहले संघ के वरिष्ठजनों से बात करने को कहा। इसके बाद वे आठ वर्ष तक भाजपा के उपाध्यक्ष तथा 12 वर्ष तक महाराष्ट्र से राज्यसभा के सदस्य रहे।

सांसदों को अपने क्षेत्र में काम के लिए बड़ी राशि मिलती है। उसकी दलाली का धंधा अनेक सांसद करते हैं। प्रारम्भ में कई लोग आप्टे जी के पास भी इस हेतु से आये; पर निराश होकर लौट गये। लोग अपना कार्यकाल समाप्त होने के बाद वर्षों तक दिल्ली में मिले भवनों में अवैध रूप से डटे रहते हैं; पर आप्टे जी ने कार्यकाल पूरा होने के दूसरे दिन ही मकान छोड़ दिया।

नियमित आसन, प्राणायाम, व्यायाम और ध्यान के बल पर आप्टे जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता था; पर जीवन में अंतिम एक-दो वर्ष में वे अचानक कई रोगों से एक साथ घिर गये, जिसमें श्वांस रोग प्रमुख था। समुचित इलाज के बाद भी 17 जुलाई, 2012 को उनका मुंबई में ही देहांत हुआ।


टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट