जन्मदिन की शुभकामनाएं

आज मैं आप सभी का एक ऐसी शख्सियत से परिचय करवाने जा रहा हूँ जिन्होंने अपने अनुकरणीय साहस, धैर्य और सूझ-बूझ से साबित कर दिया कि नारी को अबला कहना हम सबकी सबसे बड़ी भूल है।
आजकल बरगलाए गए पगलाए हुए लोग नारी सशक्तिकरण का जो ढोल नगाड़ा बजाते फिरते हैं वे भूल जाते हैं कि वक़्त आने पर यही नारी अपने पूर्ण सबला अवतार में हमारे सम्मुख प्रकट हो जाती है। और ऐसे उदाहरणों से तो इतिहास भरा पड़ा है।

ऐसी ही एक शख्सियत हैं आदरणीया Suman Omania जी!
आप बेहद विनम्र, सरल स्वभाव की वाद- विवाद से दूर रहने वाली, मेहनती और बहुत ही सुलझे हुए व्यक्तित्व की मालकिन हैं।

आपके पति श्री अरविंद ओमानिया जी एक सर्विस प्रोवाइडर हैं जो की फ्रीज, कूलर, ए. सी. आदि उपकरणों की रिपेयरिंग का काम करवाते हैं।
दुर्भाग्यवश सन 2015 में श्री अरबिंद जी को यही काम करवाते हुए एक दुर्घटना हो गयी जिससे उनके दाहिने हाथ मे काफी गहरी चोटे आयी और उनके दाहिने हाथ ने काम करना बंद कर दिया तथा दो साल तक तो वे बिस्तर पर पड़े रहे मतलब अपना कोई भी काम खुद नहीं कर पाते थे।
ऐसी विषम परिस्थितियों में आपने अनुकरणीय साहस और धैर्य का परिचय देते हुए न केवल।पति और बच्चो को ही संभाला बल्कि श्री अरबिंद जी के सर्विस प्रोवाइडर के काम को भी हैंडल किया और तब से अब तक पूरे परिवार के लिए एक मजबूत स्तंभ बनी हुई हैं।
दूसरा कोई होता तो कबका टूट चुका होता, दो छोटे छोटे बच्चे, बीमार पति, रसोई और घर का सारा काम और उसके बाद आफिस नमन है आपके हौसले को, धैर्य को, सहनशीलता को!!

इतना सबकुक संभालते करते हुए अभी साल भर पहले ही आपने साहित्य सेवा में भी अपना योग देना शुरू किया और खुशी की बात है कि इतने कम समय मे ही आपकी एक लघुकथा 'सब बिकता है' लघुकथा संग्रह पलाश में छपी और आपकीं कविताएं भी विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छपती रहतीं हैं।

मेरे लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात यह है कि अभी कुछ महीने पहले ही आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और लगभग 3 घण्टे तक साहित्य, धर्म, राजनीति आदि पर काफी रोचक चर्चा हुई , काफी आनन्द आया था उस दिन मुझे लगा अपने ही घर पर हूँ पांच मिनट भी नहीं लगे थे मुझे सहज होने में और श्री अरबिंद जी भी बहुत ही सरल व्यक्तित्व के हैं।
पढ़िए आदरणीया द्वारा लिखी गयी मेरी एक प्रिय कविता किताब खुद अपने बारे में क्या कह रही है। 👇

किताब होने का अर्थ
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ज्ञान गंगा की हूँ पावन धार
मेरे जल से निर्मल है संसार
वेदों की हूँ गूढ़ रहस्य- सार
दूर करती अज्ञानता -अंधकार 
ज्ञान आलोक से जग को
आलोकित करती आफताब हूँ
पढ़ना भूल बैठे हो तुम जिसे
हां, मैं वहीं किताब हूँ

संशय को तलाशती
ज्ञान के साँचें में ढ़ालती
सोना बन आएं जो उन्हें
मैं कुंदन सा ही निखारती
पोथी पतरों के रहस्य
मैं सजाती , सम्हालती
अनकही, अनसुनी सी
हर पहेली का जबाव हूँ
पढ़ना भूल बैठे हो तुम जिसे
हाँ, मैं वहीं किताब हूँ

थी तो कभी मैं भी
अधिकारिणी सम्मान की
गुणीजनों ,सुधीजनों में
मेरी ज्ञान महक पहचान थी
साथ मेरा होना ही
बात थी अभिमान की
आज चंद हाथों में
मुरझाकर बनी गुलाब हूँ
पढ़ना भूल बैठे हो तुम जिसे
हाँ,मैं वहीं किताब हूँ

कैद कर लोगे मुझे क्या
तुम अहम की जंजीर से
खिलवाड़ करते हो क्यूं
अपनी फूटी तकदीर से
लड़ ना पाओगे तुम
अपनी कुंठित तस्वीर से
नौनिहाल मासूमों की
मैं भावी ख्वाब हूँ
पढ़ना भूल बैठे हो तुम जिसे
हाँ, मैं वहीं किताब हूँ

       - सुमन ओमानिया
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  ------सूरज शुक्ला

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०३-२०२१) को 'निसर्ग महा दानी'(चर्चा अंक- ३९९७) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  2. जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सुमन मैम

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  3. साहस और धैर्य की प्रतीक सुमन जी को सत-सत नमन
    उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

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  4. विषम परिस्थितियों में धैर्य और योजना पूर्वक सभी कुछ संभाल कर जीवन को व्यवस्थित ढर्रे पर लाना , सचमुच शानदार व्यक्तित्व।
    प्रेरक परिचय।
    जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं सुमन जी।

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