आर्य भारतीय या विदेशी?

आर्य कौन थे- अक्सर हमें बताया जाता है कि आर्य विदेशी थे, जो मध्य एशिया से आकर भारत में बसे थे। इन्होनें भारत की मूल प्रजाति यानि कि द्रविडों को हराकर भारत पर अधिकार किया। इतिहास के इस सिद्धांत को आर्य-आक्रांता सिद्धांत या‌ आर्य- इन्वेजन थ्योरी कहा जाता है। 

आर्य किसे कहते थे?- आर्य शब्द का शाब्दिक अर्थ है श्रेष्ठ या सम्मानित। वैदिक काल में भारतीय लोग स्वयं को आर्य कहते थे। आर्य किसे कहा जाए इस विषय पर शास्त्रों का कहना है- 

यथाचारं यथाशास्त्रं यथाचितं यथास्थितम्।
व्यवहारमुपादेत यः स आर्य इति स्मृतः।।

अर्थात् जो शास्त्रों में बताए गए धर्माचार का पालन शुद्ध चित्त से करे और स्थिति अनुसार व्यवहार करे, वही आर्य है। 

इसी से संबंधित अमरकोष के एक सूक्त के अनुसार- 

महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधवः अर्थात् आर्य शब्द का प्रयोग महाकुल, कुलीन, सभ्य, सज्जन साधु आदि के लिए किया जाता था। 

इसका सीधा अर्थ यही निकलता है कि आर्य कोई जाति विशेष नहीं थी, अपितु आर्य एक संबोधन था; जो कुलीन, सज्जन, साधुओं के लिए प्रयोग किया जाता था।



यदि आर्य भारतीय नहीं थे तो कहां से आये‌ थे?- यद्यपि हमें बताया जाता है कि आर्य मध्य एशिया के मूल निवासी थे, परन्तु सच‌ ये है कि आर्यों के मूल उत्पत्ति स्थल के बारे में इतिहासकारों में बहुत मतभेद रहा है। आर्यों के उत्पत्ति- स्थान के बारे में मुख्यतया चार सिद्धांत प्रचलित हैं। जिनमें से तीन सिद्धांतों के अनुसार आर्य‌ आक्रमणकारी थे, जबकि चौथे सिद्धांत के अनुसार आर्य भारत के मूल निवासी थे। तो आइये इन सिद्धांतों का एक त्वरित विश्लेषण किया जाय।

१. आर्यों का मूल स्थल यूरोप था?- 

कई इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों का मूल स्थान यूरोप है। भारतीय और अन्य यूरोपियन भाषाओं में की समानताएं पाईं जाती है, अतः भाषाविद् ने एक ही भाषा परिवार भारोपीय भाषा माना है।‌ भाषायी समानता के आधार पर कुछ इतिहासकारों का मानना है कि वैदिक आर्य, पारसी, यूनान, इटली, जर्मनी, फ्रांस तथा रूस आदि भारोपीय भाषी जातियों के पूर्वज मूलतः एक ही कुल के सदस्य‌ थे। 

उनके अनुसार यूरोप की लिथ्यूनियन भाषा इण्डो- यूरोपियन भाषा परिवार की सर्वाधिक अपरिष्कृत भाषा है; अतः लिथ्यूनिया या उसके आस-पास के प्रदेश ही आर्यों का मूल- स्थान रहा होगा

इस आधार पर इतिहासकार यूरोप को आर्यों का मूल स्थान मानते हैं, परन्तु यूरोप का कौन सा क्षेत्र आर्यों का उद्गम स्थल है, इसपर भी इतिहासकारों में मतभेद है। अलग- अलग विद्वान अलग- अलग देशों को आर्यों का मूल स्थल मानते हैं, जिन स्थानों में जर्मनी, हंगरी, दक्षिणी रूस, बाल्टिक प्रदेश आदि प्रमुख हैं।

२. आर्यों का मूल स्थल एशिया था?- 

कुछ इतिहासकार यूरोप के आर्यों का मूल- प्रदेश होने का खंडन करते हुए कहते हैं कि आर्यों का उत्पत्ति स्थल एशिया महाद्वीप था। इनके मुख्यतया निम्न तर्क हैं- 

a. विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद और जेंद अवेस्ता हैं, जो क्रमशः भारत और ईरान से प्राप्त हुए हैं। दोनों ग्रंथों में पाई गईं समानताओं के अनुमान पर ये तर्क दिया जाता है कि इनके इनके पूर्वज भी इसी‌ क्षेत्र के रहे होंगें।

b. एशिया माइनर के बोगजकोई नामक स्थल पर कुछ अभिलेख प्राप्त हुए, जिनकी अनुमानित तिथि १४४० ईसा पूर्व है। इनमें वरुण, मित्र आदि वैदिक देवताओं का उल्लेख है। बोगजकोई में ही प्राप्त एक अन्य अभिलेक में एक, सत्ता, सेर आदि शब्दों तो वैदिक युगीन संख्याओं के समान माना जाता है।

c. ऋग्वेद में आर्यों ने जिस पर्यावरण व भौगोलिक परिवेश का जिक्र किया है, वो यूरोप की अपेक्षा एशिया में अधिक सुलभ है।

उपरोक्त‌ तर्कों के आधार पर इतिहासकार बैक्ट्रिया, पामीर क्षेत्र, तुर्किस्तान, किर्गिस्तान, मध्य एशिया आदि को आर्यों का प्रारंभिक स्थल मानते हैं। इनमें मैक्समूलर का आर्यों का मध्य एशिया से भारत प्रवास का सिद्धांत सर्वाधिक प्रचलित है।


३- आर्य उत्तरी ध्रुव से आये थे- 

इस सिद्धांत का सर्वाधिक प्रचार बाल गंगाधर तिलक ने किया था। उनके अनुसार आर्य उत्तरी ध्रुव या आर्कटिक प्रदेश के मूल निवासी थे, जिन्होंने हिमयुग के शुरू होने पर भारत का रूख किया। यद्यपि उन्होनें इस सिद्धांत के पक्ष‌ में कुछ तर्क रखे थे, परन्तु अधिकांश इतिहासकारों ने उन तर्कों को नकार दिया।

४- आर्य भारत के मूल निवासी थे- 

अनेक इतिहासकारों का मानना है कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे। इन बुद्धिजीवियों ने आर्यों को भारत का मूल निवासी माना है। यद्यपि भारत में भी इनके‌ मूल स्थान को लेकर उनमें मतभेद है, लेकिन ये‌ मतभेद उतने गहरे नहीं है, जितने अन्य स्थानों पर आर्यों के निवास को लेकर है। इन इतिहासकारों ने सप्त-सैंधव प्रदेश, ब्रह्मर्षि देश, मध्यप्रदेश, कश्मीर, मुल्तान को आर्यों का मूल निवास स्थल माना है।

भारत को आर्यों का आदि देश मानने के पीछे तर्क-   

a. ऋग्वेद आर्यों का सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ है, जिसमें सप्त- सिंधु प्रदेश को आर्यों ने अपनी भूमि माना है व इसे देव-निर्मित देश अथवा देवकृतं योनि की संज्ञा दी है।

b. ऋग्वेद में वर्णित समस्त भौगोलिक समानताएं एकमात्र भारत के सप्त-सैंधव प्रदेश में ही पूर्णतः परिलक्षित होती हैं। यदि आर्य बाहर से आये होते तो वेदों में उस पूर्व- स्थान का निर्देशन अवश्य होता।

c. यदि आर्य विदेशी थे तो ऋग्वेद में उनके पूर्व- स्थल, प्रयाण के मार्ग या पूर्व- देश को छोड़ने का कोई उल्लेख क्यों नहीं है?

d. वैदिक संस्कृत का सर्वाधिक स्पष्ट प्रभाव भारत की समस्त प्रादेशिक भाषाओं पर दिखता है, परन्तु यूरोप की भाषाओं पर वैदिक संस्कृत का इतना प्रभाव नहीं दिखता।

उपरोक्त चार सिद्धांतों में मैक्समूलर का आर्य-आक्रांता सिद्धांत सर्वाधिक लोकप्रिय है। मैक्समूलर के अनुसार आर्य मध्य- एशिया के बैक्ट्रिया क्षेत्र के निवासी थे, जो मध्य एशिया से निकलकर भारत में आ बसे थे। भारत में इनका प्रथम स्थान आधुनिक पंजाब हुआ करता था। अनेक विद्वानों ने इस‌‌ तर्क का स्वागत किया, परन्तु वहीं कुछ विद्वानों ने इसका कडा विरोध करते हुए भारत को ही आर्यों का आदि देश माना है। 

आर्यों के मूल देश भारत को स्वीकारने के विरोध में इतिहासकारों का प्रथम तर्क यह रहता है कि यदि आर्य भारत के मूल निवासी थे, तो उन्होंने भारत का पूर्ण आर्यीकरण करने से पूर्व ही अन्य देशों का रूख क्यों किया? दूसरे उनके अनुसार अपनी उर्वर भूमि को छोड़कर आर्य अन्य दिशाओं में प्रवास क्यों करते?

इसे ऋग्वेद में उपलब्ध दसराज्ञ युद्ध के प्रसंग से जोड़कर देखा जा सकता है। ऋग्वेद के सातवें मंडल में इस युद्ध का उल्लेख मिलता है। इसमें एक ओर पुरू कबीला और उसका मित्रपक्ष समुदाय था, जिसके सलाहकार विश्वामित्र ऋषि थे, जबकि उनके विरोध में भरत कबीला था, जिसका नेतृत्व तृत्सु कबीले के राजा सुदास कर रहे थे। उनके सलाहकार वशिष्ठ थे। इस युद्ध में सुदास के भरत कबीले की विजय हुई। यह युद्ध परूष्णी नदी यानि रावी नदी के तट पर लडा गया था। कदाचित इस युद्ध के बाद कुछ पराजित मित्रपक्ष के राजाओं ने उत्तर का रूख किया होगा। कदाचित बोगजकोई में प्राप्त अभिलेख भी इन्हीं पराजित राजाओं में से किसी का हो?


आर्य-आक्रांता सिद्धांत का विरोध-

 मैक्समूलर के आर्य- आक्रांता सिद्धांत को सबसे बडी चुनौती सन् १९२१ में मिली, जब सिंधु घाटी सभ्यता की खोज की गई। यदि सिंधु घाटी सभ्यता को आर्य सभ्यता मान लिया जाता को आर्य-आक्रांता सिद्धांत खतरे में पड जाता अतैव सिंधु घाटी सभ्यता को द्रविड सभ्यता का नाम दिया गया। सिंधु घाटी के द्रविड लोग, जो भारत के मूल निवासी थे और जिन्हें कुचल कर आर्यों ने भारत‌ में अपना साम्राज्य स्थापित किया।

अंग्रेजों ने सिंधु सभ्यता की अनुमानित तिथि २६०० ईसा पूर्व बताया। कुछ इतिहासकार २६०० ईसा पूर्व से १९०० ईसा पूर्व तक सिंधु सभ्यता का काल माना है, यानि आज से करीब ४५०० साल पहले। जबकि आर्यों का काल आज से ३५०० साल पहले माना जाता रहा है। परन्तु बाद में इस सिद्धांत को चुनौती मिलनी शुरू हो गई।

आई आई टी खड़गपुर और भारतीय पुरातात्विक विभाग के वैज्ञानिकों के एक शोध के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता ८००० साल पुरानी है। वैज्ञानिकों ने ऑप्टिकली सिम्युलेटेड ल्यूमनेसन्स तकनीक से सिंधु सभ्यता से प्राप्त पॉटरी की आयु को ६००० वर्ष पुराना पाया है। इसके अतिरिक्त अन्य कई शोधों से वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि सिंधु सभ्यता वास्तव में ८००० वर्ष से भी अधिक पुरानी है।

सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक स्थलों से शव- कंकाल प्राप्त हुए हैं, जिन्होंने आर्य आक्रांता थ्योरी को पूरी तरह से खारिज कर दिया है। क्योंकि इन कंकालों पर किसी भी तरीके से मार- काट के निशान नहीं थे। 


द्रविड कोई थे ही नहीं- 

हाल ही में हुए कुछ शोधों ने आर्य-आक्रांता सिद्धांत को सिरे से खारिज कर दिया है। बागपत के सिनौली में वर्ष २०१८ में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की खुदाई में विशाल रथ प्राप्त हुए हैं। इन रथों के निर्माण में तांबें का प्रयोग बहुतायत में मिलता है और ये करीब साढे चार हजार साल पुराने हैं। जबकि इतिहासकार वैदिक सभ्यता को मात्र साढ़े तीन हजार साल पुराना बताते हैं। परन्तु ये सर्वविदित है कि रथों का प्रयोग आर्य लोग ही करते थे।

इतिहासकारों का मानना था कि सिंधु सभ्यता के लोग घोडे से‌ अपरिचित थे,परन्तु सुरकोटदा से अश्व कंकाल प्राप्त हुए थे।

इसके अलावा अलग- अलग शोधों से भी यह प्रमाणित हो चुका है कि आर्य और द्रविड़ दोनों एक ही हैं। वरन् यह कहना अधिक गलत नहीं होगा कि द्रविड कोई थे ही नहीं।

फिनलैंड के तारूत विश्वविद्यालय, एस्टोनिया में भारतीयों के डी एन ए गुणसूत्रओं पर आधारित एक शोध किया गया।जिसमें ये सिद्ध हो गया कि सारे भारतीय गुणसूत्रों का पूर्वज एक ही है।आर्य और द्रविड़ का कोई भेद गुणसूत्रों के आधार पर नहीं मिला। यहीं नहीं, जो आनुवांशिक गुणसूत्र भारतीयों में मिलते हैं, वो दुनिया के अन्य किसी भाग में नहीं पाए जाते।

इस शोधकार्य में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका की लगभग सभी जाति- जनजातियों का के लगभग १३००० नमूनों का परीक्षण किया गया और इनकी तुलना चीन, जापान, मध्य एशिया, यूरोप आदि में रहने वाली मानव जाति के गुणसूत्रों से की गई।

इस तुलना में पाया गया कि सभी भारतीय चाहे वह किसी भी जाति- धर्म से संबंधित हों, ९९ प्रतिशत समान पूर्वजों की संतान हैं। शोध में पाया गया कि तमिलनाडु, केरल, आन्ध्र और कर्नाटक की जिन जातियों को द्रविड बतआया जाता है, उनकी समस्त जातियों के‌ डी एन ए गुणसूत्र और उत्तर भारत की जातियों के डी एन ए का उत्पत्ति गुणसूत्र एक ही है। इससे यह स्वयंमेव सिद्ध हो जाता है कि भारत में आर्य और द्रविड़ विवाद व्यर्थ है। वास्तव में उत्तर और दक्षिण भारतीय एक ही पूर्वजों की संतति हैं।

इसके अतिरिक्त कुछ वर्ष पूर्व ही हरियाणा के हिसार जिले के राखीगढ़ी में भी सिंधु सभ्यता के कुछ महत्वपूर्ण अवशेष प्राप्त हुए थे। सन् २०१५ में राखीगढी से कुछ मानव- कंकाल प्राप्त हुए थे, जिनके परीक्षण से‌ ये तथ्य निकलकर सामने आया है कि ये कंकाल करीब ८००० वर्ष पुराने हैं और दो सबसे बडी बातें जो निकलकर सामने आई हैं, वो ये हैं कि इनके शरीर पर किसी प्रकार के चोट के निशान नहीं मिले हैं।

दूसरी बात जो इस कंकालों के परीक्षण से सामने आई वो ये कि इनमें भी वही डी एन ए पाया गया जो अन्य भारतीय लोगों का डी एन ए है।‌ इससे स्वयंमेव सिद्ध हो जाता है कि आर्य- द्रविड़ संघर्ष और आर्यों का द्रविडों‌ पर अत्याचार मात्र एक मिथक है।

निष्कर्ष-

मैक्समूलर द्वारा दी गई आर्य इन्वेजन थ्योरी पूर्णतः निराधार है। इसका वास्तविक उद्देश्य अंग्रेजों द्वारा भारत को बांटना था। उनका मुख्य उद्देश्य यही था कि भारतीयों को भी आक्रांता और विदेशी घोषित कर दिया जाए ताकि उनके विरोध में उठने वाले स्वर दब जाएं।

वास्तव में हम सभी आर्य हैं और हम सभी द्रविड भी है। आर्य कोई जाति या समूह नहीं था, अपितु आर्य एक सम्मान सूचक शब्द है, जो आज के अंग्रेजी शब्द Sir के तुल्य माना जा सकता है। शास्त्रों में भी अनेकानेक स्थानों पर व्यक्तियों को आर्य या आर्यपुत्र की संज्ञा दी गई है। अतः द्रविड और आर्य संघर्ष की कथा मात्र एक कपोल- कल्पना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं।

- मोहित सिंह रावत

टिप्पणियाँ


  1. बहुत ही बढ़िया जानकारी दी आपने मोहित जी।

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  2. बहुत ही अच्छा लिखे हो ये चीज हर किसी को नहीं पता भाई अच्छी जानकारी दिए हो

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  3. वाह भाई यह बात से हम भी पूरी तरह नही परिचित थे धन्यवाद मित्रवर

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