शौर्य एवं पराक्रम के गायक श्याम नारायण पाण्डेय


रण बीच चौकड़ी भर-भर कर, चेतक बन गया निराला था


राणा प्रताप के घोड़े से, पड़ गया हवा का पाला था।।

ओज की ऐसी सैकड़ों कविताओं के लेखक पंडित श्याम नारायण पांडेय का जन्म ग्राम डुमरांव (जिला आजमगढ़, उ0प्र0) में 1910 में हुआ था। उनके पिता श्री रामाज्ञा पांडे अबोध शिशु को अपने अनुज विष्णुदत्त की गोद में डालकर असमय स्वर्ग सिधार गये। श्याम नारायण कई संस्कृत पाठशालाओं में पढ़कर माधव संस्कृत महाविद्यालय, काशी में आचार्य नियुक्त हो गये।

अपनी युवावस्था में वे कवि सम्मेलनों के शीर्षस्थ कवि थे। उनकी शौर्यपूर्ण कविताएं सुनने के लिए श्रोता मीलों पैदल चलकर आते थे। 1939 में रचित उनकी प्रसिद्ध कविता ‘हल्दीघाटी’ तत्कालीन विद्यार्थी और स्वाधीनता सेनानियों की कंठहार थी। जौहर, तुमुल, जय हनुमान, भगवान परशुराम, शिवाजी, माधव, रिमझिम, आरती आदि उनके प्रसिद्ध काव्यग्रन्थ हैं।

पांडे जी में एकमात्र कमी यह थी कि उन्होंने कभी सत्ताधीशों की चाकरी नहीं की। वे खरी बात कहना और सुनना पसंद करते थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डा0 हेडगेवार के लिए उन्होंने लिखा था -

केशव तुमको शत-शत प्रणाम।
आदमी की मूर्ति में देवत्व का आभास
देवता की देह में हो आदमी का वास।
तो उसे क्या कह पुकारें, आरती कैसे उतारें ?

पांडे जी नेताओं की समाधि की बजाय वीरों की समाधि तथा बलिदान स्थलों को सच्चा तीर्थ मानते थे। अपने काव्य ‘जौहर’ में वे लिखते हैं -

मुझे न जाना गंगासागर, मुझे न रामेश्वर काशी
तीर्थराज चित्तौड़ देखने को मेरी आंखें प्यासी।।

हल्दीघाटी के युद्ध में राणा प्रताप को घिरा देखकर वीर झाला उनका छत्र एवं मुकुट धारण कर युद्ध क्षेत्र में कूद पड़े। इस पर पांडे जी ने लिखा -

झाला को राणा जान मुगल, फिर टूट पड़े वे झाला पर
मिट गया वीर जैसे मिटता, परवाना दीपक ज्वाला पर।।
स्वतन्त्रता के लिए मरो, राणा ने पाठ पढ़ाया था
इसी वेदिका पर वीरों ने अपना शीश चढ़ाया था।।

पांडेय जी की कलम की धार तलवार की धार से कम नहीं थी। युद्ध का वर्णन उनकी लेखनी से सजीव हो उठता था -

नभ पर चम-चम चपला चमकी, चम-चम चमकी तलवार इधर
भैरव अमन्द घन-नाद उधर, दोनों दल की ललकार इधर।।
वह कड़-कड़ कड़-कड़ कड़क उठी, यह भीम-नाद से तड़क उठी।
भीषण संगर की आग प्रबल, वैरी सेना में भड़क उठी।।

जन-जन के मन में वीरता एवं ओज के भाव जगाने वाले इस अमर कवि का घोर अर्थाभावों में 27 जनवरी, 1989 को देहांत हुआ।

दुर्भाग्यवश हिन्दी की पाठ्यपुस्तकों में से उन कविताओं को निकाल दिया गया है, जिनसे बालकों में देशभक्ति के संस्कार उत्पन्न होते थे। 1947 के बाद हमारे शासकों ने इन्हें साम्प्रदायिक घोषित कर दिया। महाकवि भूषण और उनकी ‘शिवा-बावनी’ को तो गांधी जी ने ही निषिद्ध घोषित कर दिया था। अब पंडित श्यामनारायण पांडे की ‘हल्दीघाटी’ भी निष्कासित कर दी गयी है।

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