हंसमुख व मिलनसार भंवरसिंह शेखावत


श्री भंवरसिंह शेखावत का जन्म 18 जनवरी, 1923 को ग्राम चिराणा (जिला झुंझनू, राजस्थान) में हुआ था। वे 1944 में स्वयंसेवक और 1946 में प्रचारक बने। वे अपने माता-पिता की अकेली संतान थे। उनके पिताजी पहले जयपुर राज्य की सेना में थे। इसके बाद वे सरकारी सेवा में आ गये।


उनके प्रचारक बनने से अभिभावकों को बहुत कष्ट हुआ। वे अपनी माताजी से कहते थे कि तुम्हारा एक पुत्र देश की सेवा में गया है, तो तुम्हारी सेवा के लिए भगवान तुम्हें दूसरा पुत्र देगा। और सचमुच उनकी वाणी सत्य हुई। उनके जन्म के 23 वर्ष बाद उनके छोटे भाई गुमान सिंह का जन्म हुआ।

भंवरसिंह जी 1946 से 1959 तक राजस्थान में कई स्थानों पर जिला प्रचारक रहे। इस बीच संघ पर प्रतिबन्ध लगने से सभी कार्यकर्ताओं को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। प्रतिबंध समाप्ति के बाद भी उन समस्याओं का अंत नहीं हुआ; पर भंवरसिंह जी धैर्यपूर्वक कार्यक्षेत्र में डटे रहे। वे 1959 से 76 तक बीकानेर, अजमेर तथा एक बार फिर बीकानेर विभाग प्रचारक रहे। 1976 से 1983 तक उन पर प्रांत व्यवस्था प्रमुख का दायित्व रहा।

व्यवस्था प्रमुख रहते हुए उनकी देखरेख में जयपुर में प्रांत कार्यालय ‘भारती भवन’ का निर्माण हुआ। जब कन्याकुमारी में श्री एकनाथ जी के नेतृत्व में विवेकानंद शिला स्मारक का निर्माण हुआ, तो राजस्थान में भंवरसिंह जी उस अभियान के संगठन मंत्री रहे। उनके नेतृत्व में पूरे प्रान्त से साढ़े छह लाख रु. एकत्र हुए, जिसमें एक लाख से अधिक का योगदान राजस्थान सरकार का था। इसके लिए बनी समिति में उन्होंने अनेक प्रभावी व प्रतिष्ठित लोगों को जोड़ा। राजस्थान विश्वविद्यालय के उपकुलपति डा0 मथुराप्रसाद शर्मा तथा शिक्षा मंत्री श्री शिवचरण लाल माथुर को उन्होंने समिति का अध्यक्ष बनाया।

राजस्थान में शेखावटी के व्यापारियों ने देश भर में अपनी कारोबार क्षमता की धाक जमाई है। बिड़ला, डालमिया, सिंघानिया आदि यहीं के मूल निवासी हैं। जब ये सेठ अपने गांव आते थे, तो भंवरसिंह जी उन्हें अपने गांव का विकास करने तथा उनकी आर्थिक सामर्थ्य को देशहित में मोड़ने का प्रयास करते थे। वे उन सेठों की सम्पत्ति की देखभाल करने वालों से भी संपर्क रखते थे।

उन दिनों सेठ बिड़ला द्वारा पिलानी में स्थापित तकनीकी कॉलिज (बिट्स) में पूरे देश से छात्र आते थे। भंवरसिंह जी ने वहां शाखा चलाकर उनमें से कई को प्रचारक बनाया, जो राजस्थान के साथ ही अन्य प्रान्तों में भी गये। उनके समय के कई कार्यकर्ता आगे चलकर सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े प्रसिद्ध हुए।

शेखावटी क्षेत्र में नाथ सम्प्रदाय के सन्तों का बड़ा प्रभाव है। इनसे वे नियमित संपर्क रखते थे। राजस्थान के अनेक बड़े राजपूत सरदारों को भी उन्होंने संघ से जोड़ा। खाचरियावास के ठाकुर सुरेन्द्र सिंह आगे चलकर प्रांत संघचालक बने। भूस्वामी आंदोलन के नेताओं को भी उन्होंने राष्ट्रीय दृष्टि दी। उनमें से एक ठाकुर मदनसिंह दाता राजस्थान जनसंघ के अध्यक्ष बने।

श्री भंवरसिंह जी 1984 से 86 तक उदयपुर संभाग प्रचारक रहे; पर इस बीच वे आंत के कैंसर से पीड़ित हो गये। जानकारी मिलने पर उन्होंने हंसते हुए इस रोग का सामना किया। चिकित्सा के सभी प्रयासों के बावजूद 21 अगस्त, 1986 को उन्होंने सदा के लिए सबसे विदा ले ली।

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट